रात है, तारे भी हैं,
बस एक तुम नहीं,
दिल में इंतज़ार है, बेचैनी भी,
बस एक तेरी खबर नहीं,
तेरी फ़िक्र भी, कर लेता वक़्त बेवक़्त तेरा जिक्र भी,
बस मेरी पूछ लेता कोई नहीं,
तुम हसीन, तुम सही भी,
मैं गलत, मुझ में कमियां बेहिसाब कई,
अब सोच लिया की नहीं दूंगा तुझे अपनी मोहब्बत के सबूत,
जाओ तुम भी जाओ,
मैं तनहा जी लूंगा यूँही,
पर जो तुम जाओ, बस एक गुज़ारिश है तुमसे करनी,
ये दिल ले जाना निकाल के मेरा,
के तुम बिन ये कम्बख्त धड़कता नहीं…
-N2S
18122015
सफेद धुएँ सा उठता हुआ कहीं खो जाता हूँ,
फूलों पर ओस की बूँदों सा लिपट जाता हूँ मैं,
खाली पन्नों पर खींचने को बेताब,
चंद शब्दों में ही ठहर जाता हूँ मैं,
हाथों की लकीरों में ना जाने क्या मंज़िल लिखी होगी,
फिलहाल तो वादियों,रास्तों, दरखतों में ही पनाह लेता हूँ मैं,
गाड़ी की रफ़्तार से जब झुलफें आँखों पर आती हैं,
बाहें फैलाकर पंछीयों सा उड़ जाना चाहता हूँ मैं,
समुंदर किनारे शाम को अलविदा कहता हूँ,
रेत में नंगे बदन लेटकर तारे गिनता हूँ मैं,
आवारगी है दिन में, रातें बेचैन फिरती हैं सड़कों पर,
कभी चाई की चुस्कियों में तो, कभी शराबी बन जाता हूँ मैं,
यारियाँ पहली सी ना रही,
जो थी नदियों सी शरारती,
अब वे बादल की बूदों की तरह कभी कभार ही बरसती,
उन्ही चंद बूँदों में बिनमौसम भीग लेता हूँ मैं,
हर खूबसूरत चेहरा है अपना, पर हम किसी के नहीं,
अब पहला सा आवारा दिल लिए फिरता नहीं,
जिनसे था प्यार कभी जहानों में,
एक-एक कर उनकी डोलियों को कंधा दे आया हूँ मैं,
कभी एक खलिश सिने में उठ ही जाती है की…
किसी को इंतेज़ार नही मेरा, फिर भी ना जाने किसकी राह तकता हूँ मैं,
बचपन के खेल मीठी यादें बन गये,
जवानी हर दिन एक नया इम्तिहान ले आती है,
आज बसतों में सपने कम उम्मीदें ज़्यादा हैं,
हसरतों के समुंदर से जब किनारों को खोजता हूँ,
ना जाने क्यूँ और डूबता चला जाता हूँ मैं,
शाम की साग पर भले कोई मेरा इंतेज़ार ना करे,
और ना जाने किसकी बाहों में ये सफ़र ख़त्म हो,
तब तलक बेफिक्री में तन्हा चलता जाता हूँ मैं…