रात की ख़ामोशी (Raat Ki Khamoshi)

खुशियों के तोल-मोल से दूर कहीं भुला बिसरा पड़ा है सपनों का झोला,
बालों की सफेदी अब फर्क नहीं करती,
उम्र के पकने से पहले ही दे जाती हैं जिम्मेदारियों की रसीद,
हांसिल क्या किया है समझ नहीं आता,
और कामयाबियों की फेहरिश्त इतनी लम्बी भी नहीं,

मोबाइल की डायरेक्टरी में गिनती तो बढ़ती रहती है नामों की हर रोज़,
पर उनमें करीबी शायद अब एक-दो ही,
समय अब कभी काफी नहीं होता,
ज़रुरत पूरी हो जाती है, पर जरूरतें कम होती नहीं,

टूटे सामान अब जोड़े जाते नहीं, बदल दिए जाते हैं,
जो रिश्ते थोड़े मुश्किल होने लगे, तोड़ दिए जाते हैं,
लोग वही रहते हैं, उनके स्टेटस बदल जाते हैं,
अनजान जो दोस्त बने थे, धीरे-धीरे अनजान बन जाते हैं,



दिल में अब भी बहुत पड़े हैं आधे-अधूरे अरमान,
पर शायद अब सब धीरे-धीरे हाथ खड़े करने लगे हैं,
जीने लगे हैं किसी और के लिए,
पालने लगे हैं उसे बड़े जतन से,
आखिर कल उसपर ही तो लादना है ये सपनों का झोला,

चलो अब सो जाते हैं, रात से जो थोड़ी मोहल्लत मांगी है चंद लम्हों की,
बड़े अरसे बाद दिल की बाल्टी से कुछ बातें छलकी हैं,
रात की ख़ामोशी का शोर शायद सबसे ज्यादा होता है,
की बातें खुद तक पहुँच जाती हैं…
-N2S
10032019Man looking at lights in night

कितना कमाता हूँ मैं (Kitna Kamaata Hoon Main)

different types of bank notes
कदमों की रफ़्तार भले तेज़ नहीं पर,
सपनो पर भरोसा आज भी है,
कुछ दूर हूँ शुरूवात से मगर,
खुद पर यकीन आज भी है,
ग़लत ना होकर भी दुनिया के लिए क्यूँ ग़लत हूँ मैं,
उनको तो बस दिखता है नोटों का वजन, जिन पर कुछ हल्का हूँ मैं,
क्यूँ वो नहीं पूछते की कैसा हूँ मैं?
क्यूँ हर सवाल हँसकर पूछता है, की कितना कमाता हूँ मैं ?

सोचता था की चेहरे पढ़ने से औरो के दिलों को समझ जाउँगा,
क्यूँ है दुनिया ऐसी शायद किसी को समझा पाउँगा,
पर अब जो पढ़ सकता हूँ चेहरे तो बस ये जानता हूँ,
कोई नहीं देखता कितने कदम चला हूँ मैं,
सब ये देखते हैं, की कितना कमाता हूँ मैं,



एक दीवार चढ़ने पर लगी थी चोट मुझे,
उसके कुछ निशान रह गये थे,
लंगड़ा के चलता हूँ तो कोई ये नहीं पूछता की कैसे गिरा मैं,
सब को ये जानना है की कहाँ खड़ा हूँ मैं,
कभी सोचता था मिलेंगे दोस्त जो कहीं राह पर,
दिल की हर बात कहेंगे,
कुछ किससे पुराने, कुछ नये, साथ बैठ कर हँसेंगे,
पर कोई मिलने पर नहीं पूछता की, कैसा हूँ मैं,
सबको जानना है की कितना कमाता हूँ मैं,

मानता हूँ की इस दुनिया में एक इंसान की पहचान,
उसके उँचे औहदे से होती है,
जहाँ लोग बस देखते हैं कार की कीमत,
बातें हसियत से शुरू होती है,
क्यूँ सबको चाहिए ज़रूरत से ज़्यादा?
जब सबकी मंज़िल छे फीट ज़मीन है,
क्यूँ किसी के गिरने पर लोग खुश होते हैं?
और मिल जाए थोड़ी शोहरत तो जल उठते हैं,
क्यूँ नहीं समझते की आए थे खाली हाथ?
और साथ तो नाम भी नहीं जाएगा,

जब कहता हूँ की मैं बस अपने सपनो को जीना चाहता हूँ,
कर रहा हूँ कोशिश की उनको एक बार जी सकूँ,
किसी के सपनो को समझना तो दूर, लोग होठों को एक तरफ खींच लेते हैं,
कुछ तो हँसते है पीछे, कुछ तो मुँह पर ही हँस देते हैं,
क्या फ़र्क पड़ता है की मेरे पर्स में कुछ नोट कम है,
नहीं चाहिए मुझे सोने की थाली जब, मुझे भूख कम है,
चेहरे पर एक मुस्कान और दिल में इतनी तो गैरत है,
की ना पूछूँ किसी की हसियत जब तक उसमें हसरत है,



नहीं करता मैं उम्मीद सबसे भले की,
ये तो शायद बेमानी है,
पर बस एक मासूम सवाल है दोस्तों,
में तो कभी बदला नहीं,
फिर क्यूँ पूछते हो की कितना कमाता हूँ मैं?,
फिर क्यूँ पूछते हो की कितना…

-N2S
11022012

मुझसे मैं मिलूँ (Mujhse Main Miloon)

silhouette of a boy walking with a backpack against the horizon

मिला ही नहीं मैं किताबों के अक्षरों में,
ना था मैं शब्दों के शोर में,
और ना रिश्तों की बंदिशों में,
पता ही नहीं चला के ये सफ़र कब हुआ शुरू,
तो कहाँ मिलता मैं दुनिया के सच और झूठ में,

मिला नहीं मैं दोस्तों की भीड़ में,
ना ही छलका किसी की आँखों में,
ना ही सुकून मिला किसी की बाहों में,
कोशिश बहुत की ठहर के ढूँढूँ इन रास्तों पर,
मगर कहाँ मिलता यहाँ तो हर कोई खुद से कोसो दूर है,



सोचा शायद सुनसान सड़कों में मिलूँ खुद से,
शायद पहाड़ों की उँचाई से दिखूं,
बिका नहीं नोटों की खुश्बू से,
रुका नहीं कमजोर हसरतों की ज़ंजीरों से,
फिर भी ढूँढ ना पाया खुद को कहीं,

अब सोचता हूँ की शायद मैं तो यहाँ कभी था ही नहीं,
फिर भी एक आस लिए भटकता हूँ की क्या पता कहीं
किसी मोड़ पर
मुझसे मैं मिलूँ…

-N2S
21092012

Befikri

lonely-boy
“हसरतों के समुंदर से जब किनारों को खोजता हूँ,
ना जाने क्यूँ और डूबता चला जाता हूँ मैं…”

सफेद धुएँ सा उठता हुआ कहीं खो जाता हूँ,
फूलों पर ओस की बूँदों सा लिपट जाता हूँ मैं,
खाली पन्नों पर खींचने को बेताब,
चंद शब्दों में ही ठहर जाता हूँ मैं,
हाथों की लकीरों में ना जाने क्या मंज़िल लिखी होगी,
फिलहाल तो वादियों,रास्तों, दरखतों में ही पनाह लेता हूँ मैं,
गाड़ी की रफ़्तार से जब झुलफें आँखों पर आती हैं,
बाहें फैलाकर पंछीयों सा उड़ जाना चाहता हूँ मैं,

समुंदर किनारे शाम को अलविदा कहता हूँ,
रेत में नंगे बदन लेटकर तारे गिनता हूँ मैं,
आवारगी है दिन में, रातें बेचैन फिरती हैं सड़कों पर,
कभी चाई की चुस्कियों में तो, कभी शराबी बन जाता हूँ मैं,

यारियाँ पहली सी ना रही,
जो थी नदियों सी शरारती,
अब वे बादल की बूदों की तरह कभी कभार ही बरसती,
उन्ही चंद बूँदों में बिनमौसम भीग लेता हूँ मैं,



हर खूबसूरत चेहरा है अपना, पर हम किसी के नहीं,
अब पहला सा आवारा दिल लिए फिरता नहीं,
जिनसे था प्यार कभी जहानों में,
एक-एक कर उनकी डोलियों को कंधा दे आया हूँ मैं,
कभी एक खलिश सिने में उठ ही जाती है की…
किसी को इंतेज़ार नही मेरा, फिर भी ना जाने किसकी राह तकता हूँ मैं,

बचपन के खेल मीठी यादें बन गये,
जवानी हर दिन एक नया इम्तिहान ले आती है,
आज बसतों में सपने कम उम्मीदें ज़्यादा हैं,
हसरतों के समुंदर से जब किनारों को खोजता हूँ,
ना जाने क्यूँ और डूबता चला जाता हूँ मैं,

शाम की साग पर भले कोई मेरा इंतेज़ार ना करे,
और ना जाने किसकी बाहों में ये सफ़र ख़त्म हो,
तब तलक बेफिक्री में तन्हा चलता जाता हूँ मैं…

-N2S

Kaash Main Bada Na Hota

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“काश मैं कभी बड़ा ना होता,
तो शायद बचपन की खुशियाँ रद्दी में ना जाती…”

बताया था किसी ने की उम्र के इस पड़ाव में
जेब में सिक्के नही होते,
खुशियों की कीमत हो जाती है इतनी की
वे ठेलों या गली-कूचों में नही बीकते,
कभी हथेली से भी बड़े दिखते थे जो सिक्के,
अब वे उंगलियों में गुम हो जाते हैं
पर एक-एक कर गुल्लक में नही गिरते,

अब कोई मेरी पेन्सिल नही चुराता,
नोटबुक के आँखरी पन्ने को कोई खराब नही करता,
शाम को नही निकलता मैं खेलने,
की ज़िंदगी की छुपन-चुपाई में छिपे बैठे हैं
सब यहीं कहीं,
चले जाते हैं कुट्टी करके जो यार अब,
बटी करने वापिस नही आते,



रात में जो कभी नींद आ जाती है फर्श पर,
तो फर्श पर ही सुबह होती है,
की कंधे पर रखकर
बिस्तर पर सुलाने कोई नही आता,
जो हाथ संवारते थे बाल मेरे,
आज उन हाथ में मेरा सर नही आता,
अच्छा भी है की कोई कान नही खींचता,
कोई मुर्गा नही बनाता,
पर जो अब ग़लती करता हूँ मैं,
कोई समझाकर ग़लती ठीक करने की मोहल्लत नही देता,

घर की चीज़ें खिलोना नही बनती,
शब्द गीतों में तब्दील नही होते,
नाचने के लिए मौकों की इज्जाज़त लेनी पड़ती है,
और दीवारों पर रंग नही चढ़ता,
कभी सोचता हूँ की काश मैं कभी बड़ा ना होता,
तो शायद बचपन की खुशियाँ रद्दी में ना जाती…

-N2S