आज यूँही अपनी तन्हाई पर तरस खाने को जी चाहता है,
ली है शराब की एक बोतल, जिसे पीने को जी चाहता है,
शायर तो मैं हूँ नहीं फिर भी इसने शायरी सीखा दी है मुझे,
धुंधली आँखों से भी अब साफ दिखने लगा है मुझे,
सोच का पहला पहर बीता तो लगा शराब जैसे बोलने लगी है,
है ये हक़ीक़त या मुझे चढ़ने लगी है,
फिर भी चलो यहाँ कोई और तो है नहीं,
वो शराब की घूँट ही क्या जिसमे कोई यार साथ नहीं,
बोली शराब की बहुत दिनों बाद मिले कुछ तो वजह होगी,
हँसकर मैने कहा क्यूँ अब दोस्तों की तरह तुमसे भी मिलने की इजाजत लेनी होगी,
पहले जो ढूँढते थे बहाने तो हज़ारों मिल जाते थे,
दोस्तों के घर के रास्ते चन्द कदमों में तय हो जाते थे,
अब तो वजह चाहिए, कोई तो दिन बार मिल ही जाएगा,
दोस्त आया तो मिल लेंगे वरना क्या फ़र्क पड़ जाएगा,
धीरे से शराब फिर बोली कहीं दिल तो टूटा नहीं है तुम्हारा,
लोग अक्सर चूमते है मुझे जब छोड़ जाता है कोई करीबी सहारा,
नहीं दिल टूटे तो अरसा हो गया, उसे फिर जोड़ने कोई नहीं आया,
मैने भी छोड़ दी तलाश, दिल पर दस्तक देने कोई भी नहीं आया,
हाँ आई है एक खबर के उसकी विदाई पर मुझको भी बुलाया गया है,
उलझन में हूँ के लेकर जाओं फूल या झूठे वादे, जिन्हे भुलाया गया है,
शराब ने की आख़िरी कोशिश बोली अब तो मैं भी थोड़ी ही बची हूँ,
मैने कहा चल दी तू भी पर मैं तो अब भी खड़ा हूँ,
शायद तुम्हारी भी उम्मीदें तोड़ी है मैने,
जो देखे होंगे तुमने सपने, शायद तोड़े होंगे मैने,
क्या कहूँ अब तो मेरी हर दलील झूठी लगती है,
वे देखते है मुझे अपनी नज़रों से जो मुझे नापने लगती है,
उन सबको तो चाहिए महेंगे सबूत जिनकी मेरे पास बहुत कमी है,
कोई नहीं देखता साफ नियत यहाँ या फिर आँखों में कितनी नमी है,
किसी से कहता नहीं मैं कुछ, कहेंगे शिकायत करना तो आदत है मेरी,
पर ये तो खुद से जूझती एक कमजोर सी कोशिश है मेरी,
जाते जाते शराब बोली फिर कब मिलना होगा,
मैने कहा जहाँ कद्र नहीं आशिक़ों और मुसाफिरों की वहाँ तो यूँही अक्सर मिलना होगा…
-N2S
01052012