Bade pyar se puchhti hai jab wo mujhse ki kaise ho,
Ki kya batayein use,
Takleefein bahut hai par uski khushi ke liye hans lete hain,
Ki apne hisse ke gam dekar uski hansi kyun chhenein?
Isliye khud mein hi jalkar uske chehre ko roshan kar dete hain,
Jab puchhti hai wo ki kyun kuch kehta nahi main,
Kya sunau use haal-e-dil,
Use pyar se dekhkar, meri nigahein hi sab keh deti hain,
Jab baahon mein baithi wo dheere se mere kaanon mein kuch kehti hai,
Halke se muskurakar main apni kismat par rob kar leta hun…
-N2S
15062015
Tag: Hindi poem
Niyat (Intentions)
मांगते तुझे तो कई होंगे,
फर्क तो बस नियत का है,
जब अपनी हार में भी तेरी ख़ुशी दिखी,
मेरी मोहब्बत जीत गयी…
-N2S
290122019
रात की ख़ामोशी (Raat Ki Khamoshi)
खुशियों के तोल-मोल से दूर कहीं भुला बिसरा पड़ा है सपनों का झोला,
बालों की सफेदी अब फर्क नहीं करती,
उम्र के पकने से पहले ही दे जाती हैं जिम्मेदारियों की रसीद,
हांसिल क्या किया है समझ नहीं आता,
और कामयाबियों की फेहरिश्त इतनी लम्बी भी नहीं,
मोबाइल की डायरेक्टरी में गिनती तो बढ़ती रहती है नामों की हर रोज़,
पर उनमें करीबी शायद अब एक-दो ही,
समय अब कभी काफी नहीं होता,
ज़रुरत पूरी हो जाती है, पर जरूरतें कम होती नहीं,
टूटे सामान अब जोड़े जाते नहीं, बदल दिए जाते हैं,
जो रिश्ते थोड़े मुश्किल होने लगे, तोड़ दिए जाते हैं,
लोग वही रहते हैं, उनके स्टेटस बदल जाते हैं,
अनजान जो दोस्त बने थे, धीरे-धीरे अनजान बन जाते हैं,
दिल में अब भी बहुत पड़े हैं आधे-अधूरे अरमान,
पर शायद अब सब धीरे-धीरे हाथ खड़े करने लगे हैं,
जीने लगे हैं किसी और के लिए,
पालने लगे हैं उसे बड़े जतन से,
आखिर कल उसपर ही तो लादना है ये सपनों का झोला,
चलो अब सो जाते हैं, रात से जो थोड़ी मोहल्लत मांगी है चंद लम्हों की,
बड़े अरसे बाद दिल की बाल्टी से कुछ बातें छलकी हैं,
रात की ख़ामोशी का शोर शायद सबसे ज्यादा होता है,
की बातें खुद तक पहुँच जाती हैं…
-N2S
10032019
बस खिलौने कम हैं (Bas Khilaune Kam Hain)
अब अश्क सवाल नहीं पूछते,
वजह ढूंढते हैं बह जाने को,
हम बुद्धू हैं कि ,
यह समझ नहीं पाते,
मतलबी लोग नहीं, बस आलसी हैं,
साँसों की गिनती तो पहले जितनी ही है,
अब बस खिलौने कम हैं पाने को,
कल का हस्र देख, आज थोड़ा और जी लूँ ,
की कल से कम ही तुलेंगी खुशियां
ज़िन्दगी के तराज़ू पर,
हर दिन गुज़र जाता है सिकवे करते-करते,
हर शाम एक और वजह मिल जाती है खो जाने को,
वक़्त लाया तो है तरीके बहुत बातें कहने के लिए,
बस अलफ़ाज़ कम रह गए हैं सुनाने को,
आज भी इसी आस में सो जाते हैं,
की कल कोई उठाएगा,
स्कूल जाने को…
-N2S
02012019
कितना कमाता हूँ मैं (Kitna Kamaata Hoon Main)
कदमों की रफ़्तार भले तेज़ नहीं पर,
सपनो पर भरोसा आज भी है,
कुछ दूर हूँ शुरूवात से मगर,
खुद पर यकीन आज भी है,
ग़लत ना होकर भी दुनिया के लिए क्यूँ ग़लत हूँ मैं,
उनको तो बस दिखता है नोटों का वजन, जिन पर कुछ हल्का हूँ मैं,
क्यूँ वो नहीं पूछते की कैसा हूँ मैं?
क्यूँ हर सवाल हँसकर पूछता है, की कितना कमाता हूँ मैं ?
सोचता था की चेहरे पढ़ने से औरो के दिलों को समझ जाउँगा,
क्यूँ है दुनिया ऐसी शायद किसी को समझा पाउँगा,
पर अब जो पढ़ सकता हूँ चेहरे तो बस ये जानता हूँ,
कोई नहीं देखता कितने कदम चला हूँ मैं,
सब ये देखते हैं, की कितना कमाता हूँ मैं,
एक दीवार चढ़ने पर लगी थी चोट मुझे,
उसके कुछ निशान रह गये थे,
लंगड़ा के चलता हूँ तो कोई ये नहीं पूछता की कैसे गिरा मैं,
सब को ये जानना है की कहाँ खड़ा हूँ मैं,
कभी सोचता था मिलेंगे दोस्त जो कहीं राह पर,
दिल की हर बात कहेंगे,
कुछ किससे पुराने, कुछ नये, साथ बैठ कर हँसेंगे,
पर कोई मिलने पर नहीं पूछता की, कैसा हूँ मैं,
सबको जानना है की कितना कमाता हूँ मैं,
मानता हूँ की इस दुनिया में एक इंसान की पहचान,
उसके उँचे औहदे से होती है,
जहाँ लोग बस देखते हैं कार की कीमत,
बातें हसियत से शुरू होती है,
क्यूँ सबको चाहिए ज़रूरत से ज़्यादा?
जब सबकी मंज़िल छे फीट ज़मीन है,
क्यूँ किसी के गिरने पर लोग खुश होते हैं?
और मिल जाए थोड़ी शोहरत तो जल उठते हैं,
क्यूँ नहीं समझते की आए थे खाली हाथ?
और साथ तो नाम भी नहीं जाएगा,
जब कहता हूँ की मैं बस अपने सपनो को जीना चाहता हूँ,
कर रहा हूँ कोशिश की उनको एक बार जी सकूँ,
किसी के सपनो को समझना तो दूर, लोग होठों को एक तरफ खींच लेते हैं,
कुछ तो हँसते है पीछे, कुछ तो मुँह पर ही हँस देते हैं,
क्या फ़र्क पड़ता है की मेरे पर्स में कुछ नोट कम है,
नहीं चाहिए मुझे सोने की थाली जब, मुझे भूख कम है,
चेहरे पर एक मुस्कान और दिल में इतनी तो गैरत है,
की ना पूछूँ किसी की हसियत जब तक उसमें हसरत है,
नहीं करता मैं उम्मीद सबसे भले की,
ये तो शायद बेमानी है,
पर बस एक मासूम सवाल है दोस्तों,
में तो कभी बदला नहीं,
फिर क्यूँ पूछते हो की कितना कमाता हूँ मैं?,
फिर क्यूँ पूछते हो की कितना…
-N2S
11022012