आज ऐसे ही अपनी डीग्रीयों पर नज़र पड़ी तो,
तो पाया की खुद को गधा बनाने के लिए बीस साल पढ़ना पड़ा,
बचपन में नर्सरी स्कूल दौड़ा,
ए बी सी डी का मतलब पता ना होता था पर माइ बेस्ट फ्रेंड पर निबंध लिखना पड़ा,
खुद से भारी वज़न के बस्ते लेकर गया,
क्लासवर्क तो कभी समझ नही आया और होमवर्क के लिए ट्यूसन लगाना पड़ा,
कभी जो मिले परीक्षा में अंडे,
तो घर पर लगी क्लास और स्कूल में पड़े डंडे,
अध्यापकों ने भी बहुत ज़ोर लगाया,
कभी बेंचों पर हाथ खड़ा करवाया तो कभी सबके सामने मुर्गा बनाया,
बोर्ड की पढ़ाई करते करते आँखों पर चस्मा लग गया,
नंबर तो अव्वल आए नही पर क्लास का डबल बॅटरी बन गया,
सोचा चलो थोड़ा और मेहनत करेंगे,
डॉक्टर ना बन सके तो इंजिनियर तो बन जाएँगे,
पर इंजिनियरिंग की सीट के लिए नंबर ना आया,
ना जाने कितने टेस्ट दिए, ना जाने कितनो का घर भर आया,
कॉलेज से हमें कोई शिकायत ना थी,
जब लड़कियों पर थीसिस लिखे तो क्या पास होते,
बाइक पर बसों का पीछा करते और क्लास से नदारद रहते,
ऐसे ही जैसे तैसे चलो ग्रेजुएट तो बन गये,
साथियों की तो हो गयी शादियाँ और हम कॅट के कॅंडिडेट हो गये,
शायद बाप के पैसे आँखों पर खटक रहे थे,
पढ़ाई में पहली ही किए थे जो लाखों खर्च, कुछ कम लग रहे थे,
एक महान कॉलेज में लाखों देकर प्रवेश लिया,
जहाँ परीक्षा पत्र परीक्षा से एक दिन पहले मिल जाता था,
बाप ने मेहनत से एक एक कर के की थी जो कमाई,
उसे दो सालों में हमने कभी सिगरेट के छल्लों में तो कभी
दारू के ठेके में बहाई,
एमबीए करने के बाद एक बड़ी सीख ज़रूर मिली,
जितना पैसा बर्बाद किया कोर्स में उतने में काश दो ट्रक ले लेता,
प्लेसमेंट छोड़ो खुद की कंपनी खड़ी कर लिया होता,
अब इतनी पढ़ाई के बाद,
जब खुद से अच्छी हालत गली के कुत्ते की देखी तो,
बस एक ख़याल आया,
ऐसे ही गधे की तरह जीने के लिए बीस साल पढ़ना पड़ा और फक्र से कहलाए
पढ़े लिखे गधे…
-N2S
17042018