चलता हूँ मैं सड़क पर तो,
लगे पोस्टर, बैनर हज़ार हैं,
कई देते है मुबारक जन्मदिन के तो
कई पर छपे श्रद्धांजलि के मज़ार हैं,
क्या फ़र्क पड़ता है के मैं क्या सोचता हूँ,
लाखों की इस भीड़ में खड़ा में एक खामोश वक्ता हूँ,
ख़याल आता है अक्सर के मेरे शब्दों की अहमियत क्या होगी,
है मुद्दे देश के ज़रूरी कई, मुझसे सवाल करने की फ़ुर्सत किसे होगी,
पर आज एक खबर आई जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया,
एक लड़की के सीधे-सादे सवाल पर नेताओं की भीड़ ने बवाल किया,
उसको और उसकी नादान दोस्त को हमारी बहादुर पोलीस ने गिरफ्तार किया,
उससे भी ना पेट भरा जब जनसेवकों का तो
उस लड़की के चाचा के हस्पताल में मरीज़ों को बेहाल किया,
वाह रे मेरे देश, वाह री हमारी डेमॉक्रेसी,
हमसे तो बेहतर चीनी है,
की अपनी तानाशाही पर वे ईमानदार तो हैं,
यहाँ भूखे पेट लोगों की पैरवी करने के लिए किसी के पास वक़्त नही,
बीमारी, कुपोषण जैसी दर्जनो समस्यायें है पड़ी धरी की धरी,
देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए मुट्ठी भर भीड़ नही जुट पाती,
और लाखों का हुज़ूम देता है नेताओं को विदाई,
क्या इतनी नासमझ हमारी सोच बन गयी है,
की संकीर्णता से भरे शब्दो में फ़र्क नही कर सकती है,
नेता जिनके पास समस्याओं का समाधान नहीं,
जो बस जानते हैं देना झूठे बयान, थोपना धर्म और जाती पर ज़िम्मेदारी,
क्यूँ नही देख सकते हम के इन राजनेताओं को हमारी परेशानियों से कोई सरोकार नही,
यह तो हमसे ही लेंगे माचिस और हमें जला देने में इन्हे कोई मलाल नही,
क्या हो सकता है उस देश का भविष्य, जिसके नेता मक्कार हों,
जिन्हे नहीं अपनी सरजमीं की फ़िक्र, चाहे वो कितना ही बिखरता हो,
रोष तो मुझे अपने नौजवान दोस्तों पर भी आता है,
जो हैं मसगूल क्रिकेट मॅच देखकर सिगरेट के कश लगाने में,
जो बस जानते है जेबों में महेंगे मोबाइल लेकर घूमना,
और बेफिक्री में इंटरनेट पर खुद की तस्वीरों को शेयर करना,
जिनमे है ताक़त देश को बदल सकने की,
वे तो हवाले कर चुके हैं देश चोरो को, उन्हें बस पड़ी है सेल्फी की,
दूसरों के घर को जलता देख ये लोग भूल जाते है,
के कल ये आग तुम्हारे घर भी दस्तक ज़रूर देगी,
अगर मेरे ये दो शब्द लिख देने से कोई आहत होता है,
तो याद रहे की ये देश अब भी आज़ाद लोगों का है,
अपना फ़र्ज़ निभाने पर अगर किसी को मेरा खून चाहिए,
तो याद रहे की मैं हँसकर आज़ादी को अपना कफ़न बना लूँगा,
की शहीद-ए-आज़म भी कहकर गए हैं,
पराधीन हवा में साँस लेने से बेहतर मुझे दो पल की आज़ादी प्यारी है,
झूठी आज़ादी का दम भरने वाले लोगों से मेरी यही इंतेज़ा है,
कायर नही मैं, मैं तो बस अपने हक़ की साँस के लिए लड़ रहा हूँ,
कल मेरी शहादत पर मुझपर तिरंगा ना लपेटना,
के वह सिर्फ़ एक बहादुर सैनिक का हक़ है,
जिसने बहाया हो खून देश के लिए,
वो खूबसूरत कफ़न उसकी अमानत है,
यूँही उसे सब पर लपेटकर उसकी मौत आम ना करना,
आम ना करना…
-N2S
20112012
Disclaimer: Written at the time of Congress Government in 2012 but the current situation in the country is pretty much the same.