आशिक़ (Lover)

lonely man
“हमारी जिस्म की राख को उनकी राह पर बिखरा देना, के इसी बहाने इस आशिक़ को उनके कदम छु जाए”

ना फूलों की डोली हो,
नही कोई शहनाई हो,
ना पलके भीगे यारों की,
ना कोई गमगीन समा हो,
जब अपनी अर्थी उठे तो बस,
उसके कदमों की आहट हो,
उसके कदमों की आहट पड़े और,
सफेद लिबास में लिपटी वो दस्तक दे,
देखे वो अपनी हसीन निगाहो से के,
हमारे चेहरे पे वो मुस्कुराहट आज भी है,
छोड़ के गये थे होंठों पर,
वो तारीफ के शब्द आज भी हैं,

तारीफ भी क्या करें उस मंज़र की,
जब वो हमको देखकर पलके झुकाए गुज़रते थे,
क्या तारीफ करें उस सादगी की
जिसपर हम लूट जाया करते थे,
हमारी बेसब्र कोशिशों का बस एक ही मकसद था,
के उसका दुपट्टा गुज़रे हमारे चेहरे से या
उसकी उंगलियाँ हमारे हाथों को छु जाए,
सोचते थे की कोई राह तो ऐसी
ज़रूर होगी जिसके मोड़ पर वो हमसे टकरा जाए,
पर ना वो राह मिली ना ही वो मोड़ आया,
ज़िंदगी गुज़र गयी इसी इंतज़ार में,
ना वो मंज़र लौटा, ना वो दौर आया,



अब जो लोग हमारे जनाज़े को कंधा लिए चल रहे हैं,
हमारी नज़रें अब भी जगी हैं इसी इंतेज़ार में,
के आज तो दुश्मन भी आए हैं हमें अलविदा करने,
एक पल के लिए ही सही वो मेहरबान आए,
ना आ सके वो तो भी कोई उन्हे दोष ना देना,
कोई तो वजह रही होगी,
गुनेहगार नही हैं वो,
हमारी जिस्म की राख को उनकी राह पर बिखरा देना,
के इसी बहाने इस आशिक़ को उनके कदम छु जाए…

-N2S
13092013

Befikri

lonely-boy
“हसरतों के समुंदर से जब किनारों को खोजता हूँ,
ना जाने क्यूँ और डूबता चला जाता हूँ मैं…”

सफेद धुएँ सा उठता हुआ कहीं खो जाता हूँ,
फूलों पर ओस की बूँदों सा लिपट जाता हूँ मैं,
खाली पन्नों पर खींचने को बेताब,
चंद शब्दों में ही ठहर जाता हूँ मैं,
हाथों की लकीरों में ना जाने क्या मंज़िल लिखी होगी,
फिलहाल तो वादियों,रास्तों, दरखतों में ही पनाह लेता हूँ मैं,
गाड़ी की रफ़्तार से जब झुलफें आँखों पर आती हैं,
बाहें फैलाकर पंछीयों सा उड़ जाना चाहता हूँ मैं,

समुंदर किनारे शाम को अलविदा कहता हूँ,
रेत में नंगे बदन लेटकर तारे गिनता हूँ मैं,
आवारगी है दिन में, रातें बेचैन फिरती हैं सड़कों पर,
कभी चाई की चुस्कियों में तो, कभी शराबी बन जाता हूँ मैं,

यारियाँ पहली सी ना रही,
जो थी नदियों सी शरारती,
अब वे बादल की बूदों की तरह कभी कभार ही बरसती,
उन्ही चंद बूँदों में बिनमौसम भीग लेता हूँ मैं,



हर खूबसूरत चेहरा है अपना, पर हम किसी के नहीं,
अब पहला सा आवारा दिल लिए फिरता नहीं,
जिनसे था प्यार कभी जहानों में,
एक-एक कर उनकी डोलियों को कंधा दे आया हूँ मैं,
कभी एक खलिश सिने में उठ ही जाती है की…
किसी को इंतेज़ार नही मेरा, फिर भी ना जाने किसकी राह तकता हूँ मैं,

बचपन के खेल मीठी यादें बन गये,
जवानी हर दिन एक नया इम्तिहान ले आती है,
आज बसतों में सपने कम उम्मीदें ज़्यादा हैं,
हसरतों के समुंदर से जब किनारों को खोजता हूँ,
ना जाने क्यूँ और डूबता चला जाता हूँ मैं,

शाम की साग पर भले कोई मेरा इंतेज़ार ना करे,
और ना जाने किसकी बाहों में ये सफ़र ख़त्म हो,
तब तलक बेफिक्री में तन्हा चलता जाता हूँ मैं…

-N2S

Kaash Main Bada Na Hota

Empty Swings
“काश मैं कभी बड़ा ना होता,
तो शायद बचपन की खुशियाँ रद्दी में ना जाती…”

बताया था किसी ने की उम्र के इस पड़ाव में
जेब में सिक्के नही होते,
खुशियों की कीमत हो जाती है इतनी की
वे ठेलों या गली-कूचों में नही बीकते,
कभी हथेली से भी बड़े दिखते थे जो सिक्के,
अब वे उंगलियों में गुम हो जाते हैं
पर एक-एक कर गुल्लक में नही गिरते,

अब कोई मेरी पेन्सिल नही चुराता,
नोटबुक के आँखरी पन्ने को कोई खराब नही करता,
शाम को नही निकलता मैं खेलने,
की ज़िंदगी की छुपन-चुपाई में छिपे बैठे हैं
सब यहीं कहीं,
चले जाते हैं कुट्टी करके जो यार अब,
बटी करने वापिस नही आते,



रात में जो कभी नींद आ जाती है फर्श पर,
तो फर्श पर ही सुबह होती है,
की कंधे पर रखकर
बिस्तर पर सुलाने कोई नही आता,
जो हाथ संवारते थे बाल मेरे,
आज उन हाथ में मेरा सर नही आता,
अच्छा भी है की कोई कान नही खींचता,
कोई मुर्गा नही बनाता,
पर जो अब ग़लती करता हूँ मैं,
कोई समझाकर ग़लती ठीक करने की मोहल्लत नही देता,

घर की चीज़ें खिलोना नही बनती,
शब्द गीतों में तब्दील नही होते,
नाचने के लिए मौकों की इज्जाज़त लेनी पड़ती है,
और दीवारों पर रंग नही चढ़ता,
कभी सोचता हूँ की काश मैं कभी बड़ा ना होता,
तो शायद बचपन की खुशियाँ रद्दी में ना जाती…

-N2S

मैं जा रहा हूँ स्कूल फिर से

school corridor
“कमीनों कल स्कूल आ जाना,
क्या करूँगा तुम्हारे बिना स्कूल कॉरिडर पे अकेला खड़ा होके…”

भाड़ में जाए सब कुछ, मैं जा रहा हूँ स्कूल फिर से,
अब नही झेली जाती ऑफीस की झिक-चीक,
घरवालों की खीट-पीट,
मैं चला स्कूल फिर से,
सफेद शर्ट सीला लूँगा, नीली पॅंट तो पहनता ही हूँ वैसे,
छोटे भाई से ले लूँगा टाइ उधार,
काग़ज़ों के जहाज़ बनाने है आज से,
पहली बेंच पे अब नही बैठूँगा मैं,
बॅक बेंचस होंगी मेरा ठिकाना अब से,

पढ़ाई अब नही करूँगा मैं,
ना ही रात भर जगूंगा फ़ॉर्मूला रटके,
किस लिए बर्बाद करूँ स्कूल के प्यारे दिन,
उन चीज़ों पे जिनका कल कुछ सरोकार नही मुझसे,
अब तो बस स्कूल की सीडीयों पे बसेरा होगा,
बाकी बातें लाइब्ररी में बैठके होंगी,
ज़िंदगी से ऐसे सबक मिल चुके हैं के सब टीचर्स से यारी होगी,
रोज़ क्रिकेट मैचेस होंगे, क्लास में अंताक्षरी होगी,



एक तरफ़ा प्यार में अब किसी का दिल टूटेगा नही,
कुछ इस तरह इज़हार-ए-दिल करेंगे की उसको भी हमारी फ़िक्र होगी,
अपना खुद का बॅंड भी बनाना है,
कॉपियों के पिछे चित्रकारी करनी है,
लंच के लिए टीफिन भी तैयार करना है,
पर चाहे कितनी भी छुट्टी की घंटी बजे मुझे घर नही जाना,
मुझे पास होकर बड़ी क्लास में नही जाना,

एक बार स्कूल की चार दिवारी के बाहर जाकर देख चुका हूँ,
यहाँ दोस्त मतलबी बन जाते हैं,
यहाँ दुनियावाले बहुत बुरे बन जाते हैं,
सब कुछ चाहने वालों मेरे हिस्से की कामयाबी भी तुम ही ले लो,
मैं तो चला स्कूल फिर से,
बस इतनी सी इंतेज़ा है अपने स्कूल के यारों से,
कमीनों कल स्कूल आ जाना,
क्या करूँगा तुम्हारे बिना स्कूल कॉरिडर पे अकेला खड़ा होके…

-N2S