साला विलायती

drinks

उसे नाज़ था अपनी इम्पोर्टेड मर्सिडीज पे,
मैं अपनी मारुती में ही सफर कर लेता था,
वो बोला तुझे क्या पता अमेरिका में इमारतें कितनी ऊँची हैं,
मैंने कहा मेरे पहाड़ों से तो छोटी ही होंगी,

वो इतराकर बोला मेरी कमाई अमरीकी डॉलरों में है,
मैंने कहा दो वक़्त की रोटी रुपयों में भी खरीदी जाती है,
उसने फिर अपनी आलिशान कोठी दिखाई जो
शायद मशहूर होटलों को भी बोना कर देती,
मैंने कहा पर ये तो खाली है,

हम दोनों ऐसे ही अपनी हैसियतों पर जुबानी जंग लड़ रहे थे की,
शमशान में दो चिताओं को जलता पाया,
कुछ देर उनका जलता देख मेरा दोस्त बोला,
मैं साला भूल गया था की मुझे लकड़ी पे ही जलाया जायेगा सोने पे नहीं,

मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा,
ओये राजा भोज तू इतनी जल्दी नहीं मरेगा, चल तुझे चाय पिलाता हूँ,
वो झट से बोलै, चाय छोड़ मैं तुझे अंग्रेजी शराब पिलाता हूँ वो भी विलायती,
“साला विलायती”
-N2S
22072014



मुस्कराते हुए अलविदा कह गए

lonely girl

कभी बड़ी हसरतों से देखा करते उन्हें,
बड़ी उम्मीदों से इंतज़ार किया करते थे उनका,
सौ बार फिर आते थे उनकी गली से,
के एक बार ही सही, उसे देखकर चेहरा खिल जाये उस दिन का,

बातें तो बहुत कही उनसे,
बस वो एक बात ना कह पाए, जो जीत पता दिल उसका,
वो ख़ुशी ख़ुशी चली गयी डोली में किसी और की,
क्या कहते? क्या कर लेते? उसी में भला लगा उसका,
उस दिन समझा प्यार तो आसान होता है भुलाना,
मुश्किल तो होता है सपनों को दफनाना,

आज वर्षों बाद राह में दिखी वो तो, बस मुस्कुराते रह गए,
उन्होंने पूछा हाल तो बस मुस्कराते रह गए,
खुद की आप बीती सुनाते-सुनाते जो आँखें गीली हुई उनकी,
हमारे बढ़ते हाथ उनके चेहरे तक आते-आते रह गए,

की किस हक़ से छुयें उन्हें?
की दोस्ती भी तो नहीं बांकी थोड़ी सी भी हमारे दरमियाँ,
ये सोचके की कहीं वो हो न जाये बदनाम हमारे साथ खड़े होकर,
हम मुस्कराते हुए अलविदा कह गए ,
मुड़कर देखा तो उनकी आँखें नम थी,
इस डर से की कहीं लौटकर गले ना लगा ले उन्हें,
हम घर की ओर बस दौड़ते चले गए…
-N2S



रात की ख़ामोशी (Raat Ki Khamoshi)

खुशियों के तोल-मोल से दूर कहीं भुला बिसरा पड़ा है सपनों का झोला,
बालों की सफेदी अब फर्क नहीं करती,
उम्र के पकने से पहले ही दे जाती हैं जिम्मेदारियों की रसीद,
हांसिल क्या किया है समझ नहीं आता,
और कामयाबियों की फेहरिश्त इतनी लम्बी भी नहीं,

मोबाइल की डायरेक्टरी में गिनती तो बढ़ती रहती है नामों की हर रोज़,
पर उनमें करीबी शायद अब एक-दो ही,
समय अब कभी काफी नहीं होता,
ज़रुरत पूरी हो जाती है, पर जरूरतें कम होती नहीं,

टूटे सामान अब जोड़े जाते नहीं, बदल दिए जाते हैं,
जो रिश्ते थोड़े मुश्किल होने लगे, तोड़ दिए जाते हैं,
लोग वही रहते हैं, उनके स्टेटस बदल जाते हैं,
अनजान जो दोस्त बने थे, धीरे-धीरे अनजान बन जाते हैं,



दिल में अब भी बहुत पड़े हैं आधे-अधूरे अरमान,
पर शायद अब सब धीरे-धीरे हाथ खड़े करने लगे हैं,
जीने लगे हैं किसी और के लिए,
पालने लगे हैं उसे बड़े जतन से,
आखिर कल उसपर ही तो लादना है ये सपनों का झोला,

चलो अब सो जाते हैं, रात से जो थोड़ी मोहल्लत मांगी है चंद लम्हों की,
बड़े अरसे बाद दिल की बाल्टी से कुछ बातें छलकी हैं,
रात की ख़ामोशी का शोर शायद सबसे ज्यादा होता है,
की बातें खुद तक पहुँच जाती हैं…
-N2S
10032019Man looking at lights in night

बस खिलौने कम हैं (Bas Khilaune Kam Hain)

closeup photo of white petaled flower showing beauty of life

अब अश्क सवाल नहीं पूछते,
वजह ढूंढते हैं बह जाने को,
हम बुद्धू हैं कि ,
यह समझ नहीं पाते,
मतलबी लोग नहीं, बस आलसी हैं,
साँसों की गिनती तो पहले जितनी ही है,
अब बस खिलौने कम हैं पाने को,



कल का हस्र देख, आज थोड़ा और जी लूँ ,
की कल से कम ही तुलेंगी खुशियां
ज़िन्दगी के तराज़ू पर,
हर दिन गुज़र जाता है सिकवे करते-करते,
हर शाम एक और वजह मिल जाती है खो जाने को,
वक़्त लाया तो है तरीके बहुत बातें कहने के लिए,
बस अलफ़ाज़ कम रह गए हैं सुनाने को,
आज भी इसी आस में सो जाते हैं,
की कल कोई उठाएगा,
स्कूल जाने को…
-N2S
02012019

मंज़िल से पहले (Manjil Se Pehle)

a boy looking at the sea appearing thoughtful

थी जो आग मुझमे,
जलती थी जो मेरे अंदर,
वजह थी वह हर खुशी की,
हर सपना उससे जगमगाता था,
कहती थी हसरत, कुछ हसीन है मंज़िल मेरी,
कुछ अलग सी तकदीर है मेरी,

उस मोड़ से दूर कहीं एक राह बहुत लंबी है,
जहाँ है थोड़ी यादें, लम्हों की कमी है,
डर लगता है की ये आग बीच राह में ही बुझ ना जाए,
जीतने की ये हसरत कहीं ऐसे ही सुख ना जाए,
हर बीता हुआ दिन कुछ और साँसे खर्च कर जाता है,
कुछ चेहरे, कुछ शिकवे बेवजह दे जाता है,



कदम चलता हूँ हज़ार मगर पर क्यूँ वहीं खड़ा हूँ मैं,
जितना समझुँ में खुद को उतना उलझता जाता हूँ मैं,
आँखें बंद करूँ तो दम सा घुट जाता है,
पर खुली आँखों से भी अंधेरा दूर कहाँ जाता है,
कभी कोशिश करता हूँ किसी को हँसाने की,
पर ये सोचकर ही हँसी बिखर जाती है की यह कोशिश कितनी झूठी है,
जब खुद ही दम तोड़ चुके है अरमान,
तो फिर मंज़िल से क्यूँ ये दूरी है,

हर जाती हुई शाम मुझे मेरे सपनों से दूर कर देती है,
और हर सुबह मेरे हसीन सपनो को तोड़ देती है,
धीरे धीरे ये आग बुझने लगी है,
पर जब देखता हूँ तो मेरी कहानी अब भी अधूरी सी है,
और जैसे कुछ कहानियाँ अक्सर ख़त्म हो जाती है मंज़िल से पहले,
बस एक डर है कहीं ये आग ना बुझ जाए मेरे जलने से पहले…
-N2S
20012012