Ek Din Alvida

empty office space with chairs

रोज़ सज संवर के आते हैं,
आईने में दो टक और देख आते हैं,
बेकरार भले ना हों, दिल मचलने लगता है तुम्हारे आस-पास,
तुमसे बात करने के लिए हम रोज़ नई नई तरकीबें बना आते हैं,

औरों से नज़रें छुपाकर, तुम्हे छुप छुपकर तकते हैं,
तुम कभी तो जिक्र करोगी हमारा अपनी बातों में,
हम इसी इंतज़ार में कान लगाए बैठे रहते हैं,
बार-बार कुर्सी से उठते हैं,
तुम्हे खोजते हैं और फिर बैठ जाते हैं,
तुम्हारे पास से गुजरने के लिए सौ बार कैंटीन से पानी पी आते हैं,
कभी बालों को सहलाती तुम, कभी उँगलियों से उन्हें उलझाती तुम,
तुम्हारे हसने पर हम बेवजह खिल खिला पड़ते हैं,
हर रंग पे जँचती हो तुम,
सफ़ेद में तो चांदी सी चमकती हो,
हम तुम्हे और खुदको एक रंग में सोचकर ही रंगीन हो जाते हैं,

रिश्ता नहीं तुमसे कुछ, रिश्ते एहसानों को मतलबी बना देते हैं,
नहीं लेकर चलता तुम्हे जहन में हमेशा,
यह ख्याल तो स्क्रीनसेवर की तरह सिर्फ ऑफिस की चार दीवारी में ही पाले रखते हैं,
ऑफिस का साथ है, जरूरतों का मोहताज़ है,
एक न एक दिन अलविदा ही कहेंगे,
उस दिन तुमसे हाथ मिलाकर, तुम्हे आखिर छू ही लेंगे…
-N2S
24032017

ओहदे (Auhade)

mountains and green forest
ओहदों की नुमाईश करने वाले,
खुद चले गए, ओहदे रह गए,
अंजाम हुए सबके एक से,
कुछ दफ़न हुए तो कुछ राख बनकर धुआँ हो गए,
क्या गुमान करूँ चीज़ें समेटने का?
ये शोहरत के सामान किसके अपने हुए,
शायद इश्क़ की सीढ़ी ही पहुँचाये मुझे मेरी मंज़िल,
के फकीरों को ही जन्नत नसीब हुए,
पर मुझे तो जन्नत की भी चाहत नहीं,
उड़ान भरकर जो सफर ख़त्म करूँ मैं,
मुझे मेरे पहाड़ों की मिट्टी मिले…
-N2S
06052017

कल का इंतज़ार

Man looking at river
उम्र के इस मोड़ पे बचपन सी नादानगी की छूट नहीं मिलती,
और न ही बूढ़ों की तरह वरिष्ठ नागरिकता का कोटा,
हर नज़र तुम्हे नापति है, तोलती है,
और लाख भला करना चाहो,
अपनी ज़रा सी असहजता का गुन्हेगार तुम्हे ही ठहराती है,
रिश्तेदारी सिर्फ लेन-देन बनकर रह गयी है और यारी तारीखों की मोहताज़,
झूठ जरुरी हो गया है और जी-हज़ूरी आदत,

शिकार भी सब है यहाँ और सभी ही हैं शिकारी,
ज़िन्दगी सांसें गिनती की ही देती है,
उसकी नहीं होती हैसियतों से कोई देनदारी,
न जाने किस कल के लिए बचा रखी है फुर्सत हर एक ने,
आज में घिस-घिसकर जीते हैं, सिर्फ एक भुलावे के लिए,
घडी तो एक वही रख़ी है बरसों से,
बस बैटरी-फीते बारी बारी बदल दिए जाते हैं,
इस कल के इंतज़ार में हम न जाने कितने आज जलाये जाते हैं…
-N2S
08012018

Khudgarz (Selfish)

a boy thinking

खुदगर्ज़ तू, पर बड़ी हसीन तेरी खुदगर्ज़ी है,
तुझे चाहना तो है मेरी मर्ज़ी,
पर ये मोहब्बत मेरी फ़र्ज़ी है,
तेरा ख़याल है, तेरी फ़िक्र है,
बातों में मेरी तेरा जिक्र भी है,

तू रहे जब तक साथ, तो तू बस खुश रहे,
तू तोड़े जब ये साथ, तब भी तू खुश रहे,
तू बुरी नहीं, शायद मेरी किस्मत ही बुरी है,
दूर तू नहीं, हमारे सपनों में ही दुरी है,

कभी जो सोचता हूँ की
तुझे अलविदा कहूँ की बिन कहे चला जाऊँ,
तुझे रोते देखने का बड़ा मन है पर
शायद तुझे रोता न देख पाऊँ,
तू खुदगर्ज़, मैं खुदगर्ज़,
और यह अपनी खुदगर्ज़ी है…
-N2S
23102010

Station ki Bench

old wooden bench

किसी छोटे से स्टेशन पर सीमेंट की बेंच पर बैठा मैं,
अपने गंतव्य से अनिभिज्ञ, कुछ और ही उधेड़बुन में मशगूल था,
सोचा आज कोई आत्मीय नहीं साथ तो इसी बेंच से ही थोड़ी गुफ्तगू कर लूँ,
समय भी गुज़र जायेगा और तन्हाई की टीस भी जाती रहेगी,
मैंने कहा, “ऐ मुसाफिरों के हमराज़ आज कुछ अपनी भी सुनाओ,
जो कुछ देखते हो दिन भर कुछ आप बीती बताओ,”

उसने जवाब दिया, “क्या सुनाऊँ तुम्हे राही?”,
“मैंने सिर्फ चेहरे नहीं रूहों को देखा है,
सिर्फ झूठी हंसी नहीं सच्ची दुआओं को देखा है,
मैंने यहाँ नौजवानों की बेसब्री देखी है,
ज़िन्दगी को सिर्फ एक ख्वाब समझती बेफिक्री देखी है,
यहीं कहीं पुरानी दोस्ती की गरमाहट थी,
तो अनजान रास्तों पर निकलते मुसाफिरों की हड़बड़ाहट भी थी,



यहीं माँ के पैर छूते संस्कार दिखे,
तो यहीं बाप से न कह पाए जज़्बात दिखे,
जंग पर जाते सिपाही के डर को महसूस किया,
उसकी सलामती के लिए देवी से प्रार्थना करती उसकी संगिनी को सुना,
ना जाने कितने इश्क़ों को अंजाम देखा,
न जाने कितने रिश्तों पर इल्जाम देखा,
अपने सपनों के लिए घर छोड़ आए लड़के के जेब में सिक्कों को गिना,
तो अपने नए घर जाती दुल्हन की उलझन को पढ़ा,

यहीं पर तो बैठे थे वो दोनों,
जब उसकी आँखों से आँसू बहकर ज़मीन पर ना गिरे,
उसके आशिक़ ने उन्हें गालों पर ही रोक लिया,
गाडी के दरवाज़े पर खड़ी जब वो रुख्सत होने लगी,
आशिक़ तब तक दौड़ा जब तक प्लेटफार्म न ख़त्म हो गया,
ये ट्रेन के स्टेशन भी अजीब होते हैं,
लोग घर तो पहुँच जाते हैं पर मंज़िल तक नहीं पहुँचते…”
-N2S
15042014