अब अश्क सवाल नहीं पूछते,
वजह ढूंढते हैं बह जाने को,
हम बुद्धू हैं कि ,
यह समझ नहीं पाते,
मतलबी लोग नहीं, बस आलसी हैं,
साँसों की गिनती तो पहले जितनी ही है,
अब बस खिलौने कम हैं पाने को,
कल का हस्र देख, आज थोड़ा और जी लूँ ,
की कल से कम ही तुलेंगी खुशियां
ज़िन्दगी के तराज़ू पर,
हर दिन गुज़र जाता है सिकवे करते-करते,
हर शाम एक और वजह मिल जाती है खो जाने को,
वक़्त लाया तो है तरीके बहुत बातें कहने के लिए,
बस अलफ़ाज़ कम रह गए हैं सुनाने को,
आज भी इसी आस में सो जाते हैं,
की कल कोई उठाएगा,
स्कूल जाने को…
-N2S
02012019