हवा के ठंडे झोके सी,
आज वो राह में टकरा गयी,
वही बर्फ सा सफेद चेहरा,
गहरी काली आँखें और दिल चीर देने वाली सादगी,
उसने देखा मेरी ओर यूँ की जैसे कोई पहली पहचान हो,
और मेरे लिए तो जैसे लम्हा ही ठहर गया हो,
लफ्ज़ कुछ ना आए ज़ुबान पर,
बस एक हँसी ही होंठों पर आ सकी,
कहता भी तो क्या, नाम भी क्या लेता,
जिससे कभी ना एक पल की ही मुलाक़ात हो सकी,
उसे जाते हुए देखा तो एक पुराना वाक़या याद आया,
वक़्त में कुछ साल पहले, जब मैं ऐसा ही आवारा था,
बस में बैठा में ना जाने कौन सी उधेड़बुन में खोया था,
के वो मुझसे कुछ फ़ासले में बैठ गयी,
मैं हुआ थोड़ा बेचैन पर वो एक कहानी पढ़ने में मशगूल थी,
एक एक कर सब मुसाफिर बस से उतरने लगे,
और यह समय का दस्तूर ही था के अब हम दोनो ही थे,
जी हुआ के उठके कह दूं,
की क्या कुछ पल के लिए ही सही मैं तुम्हारा हमसफ़र बन सकता हूँ,
तुम्हे पा सकूँ, मैं इतनी बड़ी ख्वाहिश रखने से भी डरता हूँ,
तुम मुझे मिल जाओ, यह सोच के ही दिल रुक जाता है,
पर ना जाने क्यूँ तुमको देखकर रूह को सुकून मिलता है,
भरता नही मन, बस तुमको आसमान में सजाने को जी चाहता है,
लोग ना जाने कैसे तुमसे बात कर लेते हैं,
मेरा तो गला ही तुमको देखकर सुख जाता है,
यह सोचके भी मैं हैरान हूँ की लोग तुमसे हाथ मिलाकर भी,
कैसे ज़िंदा रहते हैं,
तुम अगर छू लो मुझे तो,
मुझे डर है शायद मेरा खून नसों में बहना छोड़ दे,
नहीं करता मैं उम्मीद तुमसे किसी भी एहसान की,
बस दो पल के लिए सही मुझे देखकर हंस दो,
मैं कुछ भी नही कहूँगा, तुम्ही कुछ गुफ्तगू कर लो,
अल्फाज़ों की किसे पड़ी है, मैं तो बस तुमको सुनना चाहता हूँ,
तुम्हारे साथ शायद हर लम्हा जैसे कोहिनूर सा कीमती हो,
अगर मिल सके खुद को बेचकर भी थोड़ी मोहल्लत,
तो दो पल और खरीद लूँ,
खैर जाने दो, मेरे ये शब्द मेरी हसरतों तक ही सीमित रह जाएँगे,
तुम्हारी आई मंज़िल तुम उठकर चल दी,
और मैं तुमको जाते देखकर यही सोचने लगा,
तुम मिली नही मुझे, ये शायद मेरी तक़दीर है,
मैं मिला नही तुम्हे, ये तुम्हारा नसीब है,
और कल ऐसे ही अगर फिर से हम टकरा जायें किसी राह पर,
तो यूँ ही फिर से पहचानकर कुछ ना कहना,
मेरा पास कहने के लिए होगा बहुत मगर, तुम उसकी हक़दार नही हो…
-N2S
29072013
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